
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में बैंक खातों में न्यूनतम बैलेंस (Minimum Balance) को लेकर एक अहम फैसला लिया है। अब बैंक बचत खातों के लिए न्यूनतम बैलेंस का निर्धारण खुद करेंगे, RBI के पास इस पर कोई केंद्रीय नियम नहीं रहेगा। इसका मतलब है कि बैंक अपनी सुविधानुसार खाताधारकों के लिए न्यूनतम बैलेंस तय कर सकेंगे। इस फैसले का उद्देश्य बैंकिंग व्यवस्था में लचीलापन लाना और ग्राहकों को बेहतर विकल्प उपलब्ध कराना है।
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RBI का स्पष्ट बयान
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया है कि बचत खातों में न्यूनतम शेष राशि तय करना बैंकों का अधिकार है और यह RBI के नियामकीय दायरे में नहीं आता। उन्होंने यह बात ICICI बैंक द्वारा न्यूनतम बैलेंस पांच गुना बढ़ाने के बाद कही, जिससे यह संशय दूर हुआ कि RBI इस मामले में हस्तक्षेप करेगा। इस निर्णय के बाद बैंक अपनी व्यावसायिक जरूरतों और ग्राहक वर्ग के आधार पर अलग-अलग न्यूनतम बैलेंस रख सकते हैं।
बैंकों की नीति में बदलाव
- ICICI बैंक: महानगरों और शहरी क्षेत्रों में नए खातों के लिए मासिक न्यूनतम औसत बैलेंस 10,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया है। सेमी-अर्बन शाखाओं में यह लिमिट 5,000 से 25,000 रुपये और ग्रामीण शाखाओं में 2,500 से 10,000 रुपये कर दी गई है। यह नियम 1 अगस्त 2025 से नए ग्राहकों पर लागू है।
- पब्लिक सेक्टर बैंक: जैसे कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB), कैनरा बैंक, बैंक ऑफ बारोड़ा़ आदि ने कई खातों में न्यूनतम बैलेंस की आवश्यकता पूरी तरह खत्म कर दी है।
- प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) और बेसिक सेविंग बैंक डिपॉजिट अकाउंट (BSBD): ये खाते अभी भी बिना न्यूनतम बैलेंस के चलते हैं, ताकि सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को बैंकिंग सेवाएं सुलभ रहें।
न्यूनतम बैलेंस ना रखने पर कार्रवाई
अगर खाताधारक अपनी बैंक की निर्धारित न्यूनतम बैलेंस पूरी नहीं करते हैं तो बैंक जुर्माना (पेनल्टी) लगा सकते हैं। यह जुर्माना आमतौर पर शॉर्टफॉल राशि का प्रतिशत या कुछ स्थिर राशि हो सकता है, जो बैंक के नियमों पर निर्भर करेगा।
ग्राहक कैसे रहें सावधान?
चूंकि अब न्यूनतम बैलेंस बैंक के विवेक पर निर्भर करता है, इसलिए ग्राहक को अपने बैंक की नीति को ध्यान से समझना जरूरी है। खासकर नए खाते खोलते समय या बैंक बदलते समय यह जानकारी आवश्यक है ताकि अनावश्यक जुर्माने से बचा जा सके।
RBI के इस नए नियम ने बैंकिंग जगत में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला दिया है। अब बैंक बचत खाते के न्यूनतम बैलेंस के लिए स्वतंत्र हैं, जिससे कुछ बैंक नियम सख्त कर सकते हैं और कुछ इसे पूरी तरह खत्म भी कर सकते हैं। इससे ग्राहकों के लिए विभिन्न विकल्प बनेंगे, साथ ही उन्हें अपने बैंक की ब्याज योजनाओं और शुल्क संरचना पर ध्यान देना होगा। इस बदलाव का उद्देश्य बैंकिंग सुविधाओं को ज्यादा उपभोक्ता-परक और सुगम बनाना है।
इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि खाताधारक के लिए ज्यादा पैसे रखने की बाध्यता नहीं रहेगी, बल्कि वे अपनी सुविधा और बैंक के नियम के अनुसार अपने खाते का संचालन कर सकेंगे। यह कदम बैंकिंग सेवा में पारदर्शिता और ग्राहक केंद्रित सुधार की दिशा में एक सकारात्मक पहल है।
इस प्रकार, अब बैंक खाते में ज्यादा पैसे न रखने की चिंता कम हो सकती है, पर खाताधारकों को अपने बैंक का नियम जरूर समझना होगा ताकि वे न्यूनतम बैलेंस न रखने पर लगने वाले पेनल्टी से बच सकें।
















