
भारत में संपत्ति हक से जुड़ी कानूनी व्यवस्था में हाल ही में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जिनका सीधा प्रभाव परिवारों और वारिसों पर पड़ रहा है। खासकर पिता की संपत्ति संबंधी अधिकारों को लेकर नए नियम बनाए गए हैं जो बच्चों के पारंपरिक अधिकारों में बदलाव ला रहे हैं। इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि नए कानून के तहत पिता की संपत्ति पर बच्चों का हक क्यों और कैसे प्रभावित हो रहा है, और कौन-कौन लोग संपत्ति से वंचित हो सकते हैं।
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स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति का अंतर
भारतीय कानून के अनुसार संपत्ति दो प्रकार की होती है: स्व-अर्जित और पैतृक। स्व-अर्जित संपत्ति वह है जो किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत, व्यापार या आय से खुद कमाई हो, जबकि पैतृक संपत्ति वह होती है जो पूर्वजों से कई पीढ़ियों से परिवार में चली आ रही हो।
नए कानून के अनुसार, पिता को अपनी स्व-अर्जित संपत्ति पर पूरा अधिकार मिलता है। वह इसे अपनी मर्जी से किसी को भी, चाहे बेटा हो या बेटी, वसीयत के माध्यम से दे सकते हैं या न दे भी सकते हैं। ऐसे मामलों में बच्चों का स्वचालित अधिकार समाप्त हो जाता है। वहीं, पैतृक संपत्ति पर सभी वारिसों का बराबर साझा हक होता था, लेकिन अब इस पर भी पिता की भूमिका सशक्त होती जा रही है ।
पैतृक संपत्ति और बच्चों के अधिकार
1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिला था। हालांकि, हाल ही में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि पिता की मृत्यु 17 जून 1956 से पहले हुई है, तो उस स्थिति में बेटियों का पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं माना जाएगा। यह फैसला मिताक्षरा कानून के आधार पर दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि उस समय बेटियों का अधिकार केवल तब था जब परिवार में कोई पुरुष वारिस न होता।
इसके अलावा, पैतृक संपत्ति पर वसीयत का कोई असर नहीं होता, इसलिए पिता या पूर्वज पैतृक संपत्ति को किसी एक बच्चे को देने का निर्णय अकेले नहीं ले सकते। मगर यदि संपत्ति स्व-अर्जित है, तो पिता अपनी इच्छानुसार संपत्ति का बंटवारा कर सकते हैं ।
नए कानून का उद्देश्य और परिवारों पर प्रभाव
इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य पारिवारिक विवादों को कम करना और संपत्ति वितरण में स्पष्टता लाना है। अब पिता स्वतंत्र हैं कि वे अपनी स्व-अर्जित संपत्ति को किसे दें और किसे न दें। बच्चों का अधिकार तभी सुनिश्चित होता है जब वह बिना वसीयत के कानूनी वारिस होते हैं। इससे संपत्ति विवादों में न्यायिक दखल की संभावनाएं कम होंगी और परिवार के बीच आपसी समझ बढ़ेगी।
लेकिन इसका एक पक्ष यह भी है कि कुछ बच्चे संपत्ति से वंचित हो सकते हैं यदि पिता ने वसीयत के माध्यम से उन्हें नजरअंदाज किया हो। इसीलिए परिवारों के लिए जरूरी है कि वे अच्छे से अपनी संपत्ति योजनाएं बनाएं और भविष्य के लिए पारदर्शी निर्णय लें ।
















